कोटा.
पिछले कई दशक अंतरिक्ष विज्ञान को समर्पित ही माने जाते हैं, गुजरे पांच साल तो जोरदारी से इस पर काम हुआ। हाल ही चांद पर मिशन रवाना हुआ। लेकिन, इस अधुनातन वैज्ञानिक दौर में भी मौसम विज्ञान बजट को तरस रहा है। कम से कम कोटा जिले के समीपवर्ती रावतभाटा स्थित मौस्म विज्ञान वेधशाला के हालात तो यही बयां कर रहे।
पुराने, जंग लगे उपकरणों व खाली पदों ने मौसम विज्ञान वेधशाला का मौसम बिगाड़ रखा है। हालत यह कि यहां सूर्य की गर्मी नापने के लिए सनशाइन पेपर तक तीन साल से नहीं हैं। वाटर टेंपरेचर मीटर, सॉइल थर्मामीटर सहित अन्य उपकरण भी पुराने हो चुके हैं लेकिन उन्हें बदलने के लिए पर्याप्त बजट नहीं आ रहा। यहां प्रतिनियुक्त पर एक सिल्ट ऑफिसर व चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी तैनात हैं। यह महिला ऑफिसर पुराने व जंग लगे उपकरणों से मौसम व मिट्टी के हाल जानकार पूना रिपोर्ट भेजती है। यह रिपोर्ट मासिक व सालाना भेजी जाती है।वेधशाला में दोपहर व शाम को मौसम की जानकारी नापी जाती है।
बदलने की बात आए तो दो टूक जवाब: दिल्ली से लेकर आओ
सूत्रों ने बताया कि नए उपकरण मंगवाने के लिए स्थानीय स्तर से कई बार उच्चाधिकारियों को लिखा गया है लेकिन वहां से यह जवाब आता है कि दिल्ली से जाकर उपकरण लेकर आ जाओ। इसका बिल पास कर दिया जाएगा लेकिन यहां बड़ा सवाल पैसे का खड़ा हो जाता है है कि इस खरीद का पहले पैसा कहां से आए। नए उपकरण खरीदने व रखरखाव, भवन की मरम्मत करने के लिए बजट नहीं आ रहा है।
अच्छे काम के लिए प्रमाण-पत्र भेजा
वेधशाला को चलाने के लिए कम से कम एक ऑपरेटर, चौकीदार व सिल्ट ऑफिसर होना चाहिए। लेकिन, वर्तमान में वन विभाग की सर्वेयर को प्रतिनियुक्त पर सिल्ट ऑफिसर के पद पर लगा रखा है। इसके अलावा एक चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी है। करीब दो साल पहले बेहतरीन कार्य करने पर महिला सिल्ट ऑफिसर को केन्द्र सरकार की ओर से प्रमाण-पत्र भेजा गया था। प्रमाण पत्र देने का उद्देश्य यह था कि सिल्ट ऑफिसर ने अन्य जिलों की अपेक्षा रिपोर्ट बेहतरीन व सही भेजी है। वेधशाला की ओर से प्रतिमाह मासिक व सालाना रिपोर्ट भेजी जाती है।
बैठने की कुर्सी तक नहीं
वेधशाला के रख-रखाव को लेकर आज तक कोई बजट तक नहीं आया है। हालत यह कि यहां बैठने सही कुर्सियां तक नहीं हैं। कुर्सियां टूट चुकी हैं। कार्यालय में लाइट व पंखे तक नहीं है। ऐसे में उन्हें गर्मी में बिना पंखे के कार्य करना पड़ता है। कई बार रात के समय रिपोर्ट बनानी पड़ती है। ऐसे में उन्हें अंधेरे में काम करना पड़ता है। दस्तावेजों को रखने के लिए एकमात्र अलमारी अब छोटी पडऩे लगी है। ऐसे में दस्तावेजों को खुले में रखना पड़ रहा है। ज्यादा बारिश होने पर इनमें सीलन आ जाती है। यही नहीं, वेधशाला का दरवाजा भी टूटा हुआ है। इसकी मरम्मत तक नहीं हो पा रही।
डेढ़ लाख मिले तो शौचालय बनाए
करीब दो साल पहले भवन के रख-रखाव को लेकर डेढ़ लाख रुपए बजट आया था। वन चौकी में शौचालय नहीं था। अत: शौचालयों को बनवाने में राशि को लगा दिया गया। एक बार भवन का रंग रोगन कराया गया है।
ऐसे हैं वेधशाला में 'पंच तत्व के हाल
सूर्य: सनशाइन का पता करने के लिए यहां उपकरण तो लगा है लेकिन तीन साल से सनशाइन पेपर नहीं है। इस संबंध में उच्चाधिकारियों को लिखा गया तो वहां से भी कोई संतोषप्रद जवाब नहीं आया।
मिट्टी: मिट्टी का तापमान नापने के लिए सॉइल थर्मामीटर लगा हुआ है लेकिन यह पुराना हो चुका है। अब आधुनिक थर्मामीटर की आवश्यकता है।
जल: पानी के वाष्पीकरण को जानने के लिए वाटर टेंपरेचर मीटर लगा है। यह जंग खा चुका है। कई बार सही तरह से काम भी नहीं करता है।
वायु: विंड स्पीड नापने के लिए वाले यंत्र का कांच पुराना हो चुका है। इसे भी बदलने की आवश्यकता है।
ताप: इसके अलावा तापमान नापने वाला उपकरण की लकड़ी पुरानी हो चुकी है।
हांं उपकरण बदलने की तो जरूरत है
सारे हालात पर पत्रिकाडॉटकॉम ने जब वेधशाला की सिल्ट ऑफिसर ज्योति मिश्रा से बात की तो उन्होंने खुद स्वीकारा कि कई उपकरण पुराने हो गए हैं। उन्हें बदलने की आवश्यकता है। बताया भी कि भवन में पंखे व लाइट नहीं है। फर्नीचर भी पुराना हो गया है। लेकिन बात वापस बजट की आ गई। बजट मिले तो सॉल्व हों समस्याएं।
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