कोटा. चोर गिरोहों ( thieves Gang ) ने पुलिस के शिकंजे से बचने के लिए कानून का लाभ उठाते हुए नया रास्ता इजाद कर लिया। अब चोरी, ( Theft ) छीनाझपटी, लूट ( Loot ) व नकबजनी ( Robbery ) के लिए नाबालिगों को आगे कर रहे हैं। अपराधियों के इस रास्ते ने पुलिस की मुश्किलें व काम दोनों ही बढ़ा दिया है। एक ओर पुलिस ( kota police ) को नाबालिगों को निरुद्ध करने में तमाम सतर्कता बरतनी पड़ती है, वहीं पुलिस नाबालिगों से कड़ाई से पूछताछ भी नहीं कर सकती। ऐसे में चोरों को इसका पूरा लाभ मिल रहा है।
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नरमी का उठा रहे लाभ
अपराधी बालकों व किशोरों को सजा में मिलने वाली राहत का हथियार की तरह इस्तेमाल कर रहे हैं। बालकों व किशोरों के अपराध करते हुए पकड़े जाने पर उन्हें काफी कम सजा होती है तथा उनसे अपराध करवाने वाले इससे साफ बच निकलते हैं। पुलिस के लिए अपराध रोकना काफी कठिन हो जाता है। पुलिस इसमें कड़ी पूछताछ नहीं कर सकती और न ही रिमांड ले सकती है। चोरी के बाद अपराधी के पकड़े जाने के बाद भी माल बरामदगी में काफी परेशानी होती है। हाल यह है कि पुलिस बाल अपचारी को निरुद्ध करने के बाद पूछताछ में कम उसे न्यायालय में पेश करने में तेजी से जुटी नजर जाती है।
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बालकों को अपराधी बनने से रोकने के लिए कानून
बालकों से लेकर किशोरों तक के लिए अपराध करने पर किशोर न्याय (बालकों की देखदेख और संरक्षण) अधिनियम के तहत अलग प्रावधान है। जिसमें उसे अव्यस्क मानकर उसे किशोर अधिनियम के तहत कम सजा देने का प्रावधान है। किशोर का भविष्य खराब न हों तथा वह भविष्य में अपराध के दलदल में न फंस जाए। इसके लिए उसे समझाइश व मौका दिया जाता है। यहां तक की नाम, पहचान भी गुप्त रखी जाती है। बड़े अपराधों में भी उसे काफी कम सजा होती है। ऐसे में उसे बाल सुधार गृह में उसे रखा जाता है।
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केस-1 : नए अस्पताल में महावीर नगर पुलिस ने 12 जुलाई को मरीजों व तीमारदारों का सामान, मोबाइल व पर्स व जेब से सामान चुराने के मामले में बालकों को निरुद्ध किया। पूछताछ में पुलिस को जानकारी लगी कि चोर गिरोह के सदस्य एमबीएस व मेडिकल कॉलेज में बच्चों से चोरी चकारी करा रहे हैं। इसके लिए बच्चे कुन्हाड़ी से ऑटो में रोज दोनों अस्पताल पहुंचते हैं।
केस-2 : कुन्हाड़ी पुलिस ने 11 जुलाई को अन्तरराज्यीय चोर गिरोह का खुलासा करते हुए तीन चोरों को गिरफ्तार व एक बालक को निरुद्ध किया। चोर बालक से चोरी की वारदात करवाते थे। चोर गिरोह बनाते समय न केवल नाबालिग को इसमें शामिल करते थे, बल्कि उनके माता-पिता को उन्हें साथ रखने के लिए मासिक या वार्षिक राशि का एडवांस भुगतान करते थे।
अधिनियम में सुधार की जरूरत
किशोर न्याय (बालकों की देखदेख और संरक्षण) अधिनियम का दुरुपयोग हो रहा है। सख्त कानून के साथ इस अधिनियम में सुधार की आवश्यकता है। अधिनियम का किशोरों में कोई भय नहीं है। ऐसे में उनके द्वारा किए जा रहे गंभीर अपराध बढ़ रहे हैं। ऐसे किशोरों को सख्त सजा देकर ही अन्य अपराध करने वाले किशोरों को हतोत्साहित किया जा सकता है। ऐसे किशोरों को भी बालिगों की तरह ही दंडित किया जाना चाहिए। बार-बार अपराध करने वाले किशोरों की जमानत नहीं ली जानी चाहिए और उनके माता-पिता, संरक्षक से भी इस आशय का परिवचन लिया जाना चाहिए कि वो उन पर पूरा नियंत्रण रखेंगे।
विवेक नंदवाना, अधिवक्ता
अपराध के लिए बालकों व किशोरों का सहारा लेकर अपराधी न केवल उन्हें अपराध के दलदल में धकेल रहे हैं, बल्कि स्वयं के बचाव के भी इस्तेमाल कर रहे हैं। ये चिंताजनक है। पुलिस इस मामले में पूरी सर्तकता से अपराधियों की धरपकड़ कर रही है।
दीपक भार्गव, एसपी, कोटा सिटी
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