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Monday, January 7, 2019

कॉलेज में पढऩे बड़ौदा के ढाई सौ छात्रों को लगानी पड़ती है श्योपुर की दौड़

बड़ौदा । 25 हजार की आबादी वाले नगर में एक अदद शासकीय कॉलेज नहीं है, जिसके चलते यहां के लगभग ढाई सैकड़ा छात्र-छात्राओं को रोज श्योपुर जिला मुख्यालय की दौड़ लगानी पड़ती है। ये स्थिति है कि बड़ौदा नगर की, जहां शासकीय कॉलेज नहीं होने से कॉलेजस्तरीय छात्र-छात्राओं को काफी परेशानी का सामना करना पड़ता है।


जबकि इसी सत्र में खोले गए कराहल और ढोढर के सरकारी कॉलेज में प्रवेश के लिए छात्र नहीं मिल पा रहे है और इस सत्र में दोनों कॉलेजों को मिलकर कुल 90 छात्र हैं, जिसमें कराहल में 47 और ढोढर में 43 छात्र-छात्राएं प्रवेशित हैं। उल्लेखनीय है कि वर्ष 2017 में 25 जून को ढोढर और 25 दिसंबर को कराहल में पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने ढोढर व कराहल में कॉलेज खोलने की घोषणा की, जिसके बाद जून 2018 में दोनों जगह कॉलेज खोल भी दिए गए, लेकिन बड़ौदा में कॉलेज खोलने की मांग आज भी अधूरी है।


बड़ौदा सहित बत्तीसा क्षेत्र के अभिभावकों और छात्र-छात्राओं का कहना है कि बड़ौदा में कॉलेज खोलने की मांग काफी पुरानी है, लेकिन सरकार इस मांग को दरकार कर दूसरी जगह कॉलेज खोल दिए। यही वजह है कि यहां के छात्र-छात्राएं आज भी 25 किलोमीटर दूर श्योपुर जिला मुख्यालय के कॉलेज में ही पढऩे जाते हैं।


12वीं के बाद पढ़ाई छोड़ देती है बेटियां
बड़ौदा नगर में शासकीय कॉलेज नहीं होने के कारण कई छात्राएं 12वीं के बाद ही पढ़ाई छोड़ देती हैं, क्योंकि उनके अभिभावक उन्हें बाहर पढऩे नहीं जाने देते। यही वजह है कि बड़ौदा में कॉलेज खोलने की आवश्यकता महसूस की जा रही है। वर्तमान में बड़ौदा के लगभग ढाई सैकड़ा बच्चे शासकीय पीजी कॉलेज में प्रवेशित हैं, जिनमें अधिकांश तो बड़ौदा से अपडाउन करते हैं और कई श्योपुर में किराए से कमरा लेकर रहने को मजबूर हैं।

ये बोले छात्र...
बड़ौदा में शासकीय कॉलेज खुले, इसके लिए हम काफी समय से मांग कर रहे हैं, लेकिन कोई ध्यान नहीं देता है। जबकि यहां कॉलेज की महति आवश्यकता है।
गौरव आचार्य, बड़ौदा
बड़ौदा बत्तीसा क्षेत्र में शासकीय कॉलेज जरुरत है, कॉलेज नहीं होने बड़ौदा क्षेत्र की कई छात्राएं 12वीं के बाद पढ़ाई छोडऩे को मजबूर हैं।
रामनरेश माली, लूंड
यदि बड़ौदा में ही शासकीय कॉलेज हो तो यहां के छात्र-छात्राओं को 12वीं के बाद पढ़ाई के लिए श्योपुर या अन्य बाहर नहीं जाना पड़ेगा।
रीना गुप्ता, बड़ौदा



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