श्योपुर/कराहल
चट मंगनी पट ब्याह यह कोई कहावत नहीं है। सहरिया समाज की असल जिंदगी में होने वाला शादी समारोह का आयोजन है। जिसमें मुखिया की जुबान पर शादी तय हो जाती है। बीच चौपाल पर बैठकर शादियां तय होती हैं जिनमें पंचों का फैसला अंतिम होता है। पंचों के द्वारा ही शादी के महूर्त की विधि को सुजोया जाता है। वहीं से लग्न की तिथियां तय कर 4 से 5 दिन में शादी की खरीद फरोख्त से लेकर विदाई तक हो जाती है।
कराहल ब्लॉक के सहरिया बाहुल्य बस्तियों में होने वाली शादियों में भारतीय संस्कृति की छटा देखने को मिलती है। अभी हर गांव में सहरिया समाज में शादियों की धूम दिखाई दे रही है। सहरिया समुदाय में वर पक्ष द्वारा दहेज की मांग नहीं की जाती है। वधु के पिता द्वारा जो भी दिया जाता है उसे वर पक्ष स्वीकार कर लेता है।
खाटा खिलाकर हो जाती थी शादी
सहरिया समाज में दो दशक पहले की बात करें तो शादियों में बाजरा की रोटी तथा बाजरा के आटा में मठा मिलाकर खाटा बनाया जाता था। खाटा खिलाकर ही शादी हो जाती थी। पास के गांव में बारात जाने पर लोग पैदल, साइकिल, बैलगाड़ी से ही बारात में चले जाते थे। शादियों में मसक बाजे का प्रचलन था गांव मे युवाओं की टीम ही मसक बाजे को बजाती थी टीम को जो भी इनाम मिलता उसको आपस मे बांट लेते थे।
अब शादियों में आया नया बदलाव
सहरिया समाज की शादियों में अब बदलाव आया है। बारात को पूडी सब्जी, नुकती आदि खिलाया जाता है। बारात ट्रेक्टर, जीप से जाती है दो पांच मोटर साइकिल भी अलग से जाती हैं। बैंडबाजों में मसक बाजे की जगह अब डीजे ने ले ली है।
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