
भोपाल। मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया (एमसीआई) ने राज्य के विदिशा, रतलाम और खण्डवा मेडिकल कॉलेज को मंजूरी दे दी है। इससे राज्य में एमबीबीएस की 400 सीटें और बढ़ जाएंगीं। मंत्री नरोत्तम मिश्रा ने कैबिनेट ब्रीफ्रिंग के बाद अनौपचारिक चर्चा में यह जानकारी दी।
राज्य सरकार ने इस सत्र में नए मेडिकल कॉलेजों में एमबीबीएस शुरू करने के लिए आवेदन किया था। एमसीआई ने पहले दौर के निरीक्षण के बाद सभी कॉलेजों को मान्यता देने से मना कर दिया था। इसकी प्रमुख वजह वहां संसाधनों की कमी रही। यही नहीं वहां उस समय तक न तो फैकल्टी की भर्ती हो पाई थी और न कॉलेज भवन तैयार था।
उस दौरान सरकार ने कमियां दूर करने का आश्वासन देकर कॉलेजों का दोबारा निरीक्षण करने का आवेदन किया। तभी से मान्यता का मामला अटका था। सरकार ने कमियां पूरी भी कर दीं लेकिन एमसीआई से हरीझंडी नहीं मिल पाई थी। इस पर राज्य सरकार सुप्रीमकोर्ट गई। सुप्रीमकोर्ट के निर्देश के बाद एमसीआई ने कॉलेजों का निरीक्षण किया और व्यवस्थाएं दुरुस्त पाई गईं। आखिरकार तीनों मेेडिकल कॉलेजों को एमसीआई की मान्यता मिल गई।
अभी यह है स्थिति -
सरकारी मेडिकल कॉलेज - 7
एमबीबीएस सीटें - 900
निजी मेडिकल कॉलेज - 6
एमबीबीएस सीटें - 850
बजट में 6 नए कॉलेज...
इससे पहले मध्यप्रदेश 2018 के बजट में वित्तमंत्री जयंत मलैया ने स्वास्थ्य सेवाओं पर खास ध्यान देते हुए लोक स्वास्थ्य के लिए 5689 करोड़ रुपए का प्रावधान किया था। इसमें प्रदेश में 6 नए मेडिकल कॉलेज खोले जाने की बात थी।
वहीं राष्ट्रीय स्वास्थ्य सुरक्षा योजना के तहत 77 लाख वंचित परिवारों को लाभान्वित किया जाएगा। ग्रामीण क्षेत्रों में निजी सेवा प्रदाताओं द्वारा 10 बिस्तर या अधिक क्षमता के अस्पताल खोलने पर पूंजी निवेश का 40 प्रतिशत (अधिकतम 3 करोड़) और जनजातीय क्षेत्रो में 50 प्रतिशत प्रोत्साहन अनुदान दिया जाएगा। वहीं जबलपुर में राज्य कैंसर सेंटर का निर्माण होना भी शामिल था।
वित्तमंत्री ने अपने भाषण में कहा था कि देश में स्वास्थ्य सेवाओं के मामले में मप्र 17वे नंबर पर है। पूरक पोषण आहर योजना के लिए 3722 करोड़ रुपए का प्रावधान किया गया है, इसकी आपूर्ति का काम महिला स्व सहायता समूह को सौंपा जाएगा।
यहां कहा गया था कि इंदौर में बॉन मेरो ट्रांसप्लांट सेंटर की स्थापना की गई है। भोपाल के हमीदिया अस्पताल में 2 हजार बिस्तरों की क्षमता का निर्माण कार्य जारी है। 2003 में शिशु मुत्यु दर 87 थी जो अब घटकर 47 और मातृ मृत्युदर 398 से कम होकर 221 हो गई है।
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