भोपाल. शहर में ईद की रौनक दिखाई देने लगी है। ईद का चांद देखने के लिए रूहते हिलाल कमेटी की बैठक १४ जून को मोती मस्जिद में रखी जाएगी। इस दिन चांद दिखाई देता है, तो ईद का पर्व १५ को और नहीं दिखा तो १६ जून को मनाई जाएगी। ईद का चांद दिखने का एेलान तोप से आसमान में रंगीन गोले छोडक़र किया जाएगा।
शहरकाजी सैय्यद मुश्ताक अली नदवी ने बताया कि बैठक शाम को रखी जाएगी। इसमें कमेटी चांद की तस्दीक करेगी, यदि चांद नजर आता है, तो १५ जून को ईद का पर्व मनाने का एेलान होगा, अन्यथा १६ को ईद मनाई जाएगी। शहरवासी कमेटी के एेलान के बाद ही ईद मनाएं। ईद की नमाज सबसे पहले ईदगाह पर होगी, इसके बाद अन्य मस्जिदों में अदा की जाएगी।
बाजारों में बढ़ी रौनक
मस्जिदों व घरों में ईद का पर्व मनाने साफ-सफाई के साथ नमाजियों के लिए विशेष इंतजाम किए जा रहे हैं। खरीदारी करने देर रात तक बाजारों में चहल पहल नजर आ रही है। किराना, कपड़े, बर्तन, फर्नीचर, की दुकानों पर भारी भीड़ लग रही है।
बोहरा समाज १४ को मनाएगा ईद
दाऊदी बोहरा समाज के ३० रोजे १३ जून को पूरे होंगे। समाज १४ जून को ईद का त्योहार मनाएगा। इस मौके पर शहर स्थित बोहरा समाज की मस्जिदों में ईद की विशेष नमाज और दुआ होगी। शहर की अलीगंज स्थित हैदरी मस्जिद, पीरगेट स्थित हुसैनी मस्जिद, सेफिया कॉलेज स्थित बद्री मस्जिद, कब्रिस्तान स्थित अहमदी मस्जिद, नूरमहल स्थित नजमी हॉल, कोहेफिजा स्थित इज्जी मोहल्ला और करोंद स्थित बुरहानी मस्जिद में विशेष नमाज अदा की जाएगी। सजावट का सामान सहित अन्य दुकानों पर लोगों की भारी भीड़ लग रही है। खान-पान की दुकानों पर भी बड़ी संख्या में लोग नजर आ रहे हैं।
पहले रोजे के दिन नानी ने रखा था नया नाम
भोपाल. मेरा पहला रोजा मेरे लिए कई यादगार सौगातों वाला है। उस समय मैं रोहानी जिला फैजाबाद नानी के घर पर था। जिस दिन मेरा पहला रोजा था, उसी दिन मेरा पांचवी बोर्ड का रिजल्ट भी आया था। लिहाजा मेरी रोजाकुशाई और पांचवी उत्तीर्ण होने की दावत एक साथ हुई। इस दिन मेरी नानी ने मेरा नाम सैय्यद सादिक अली बदलकर सैय्यद सद्दाम अली रख दिया। खानदान की बड़ी बुजुर्ग होने के कारण सबने ये नाम खुशी से स्वीकार कर लिया। आज भी मेरी पहचान और नाम यही है, जो नानी का दिया हुआ है।
यह कहना है मप्र उपाध्यक्ष सैय्यद सद्दाम अली का, जिन्होंने अपना यादगार रोजे की यादें साझा की। उन्होंने बताया कि उस वक्त मेरी उम्र ११ साल थी। मेरा पहला रोजा नानी के घर हुआ था। मैं सबका लाडला था। सुबह सेहरी के वक्त मेरी पसंद के पकवान बनाए गए। रोजा रखने की दुआ याद कराई गई। मुझे भूख का अहसास न हो, इसके लिए पूरे वक्त घर के लोग मेरे साथ रहे। जैसे ही इफ्तार का समय करीब आया, घर के आंगन में जो खुशियां दिखाई दी, उसे मैं कभी भूला नहीं सकता।
पसंद के नए कपड़े, मिठाई, गुलाब की माला, नोटों की माला मेरे बड़े बुजुर्ग और रिश्तेदार पहना रहे थे। वह रोजा आज भी मेरे जेहन में बसा है। आज भी मैं रमजान के पूरे रोजे रखकर कुरान की तिलावत करता हूं।
from Patrika : India's Leading Hindi News Portal https://ift.tt/2l4lfBC
No comments:
Post a Comment