भोपाल। महात्मा गांधी की 150वीं जंयती के उपलक्ष्य में गांधी भवन के सभागार में गांधी के जीवन दर्शन पर आधारित अंतर विद्यालयीन लघु नाटक प्रतियोगिता का आयोजन किया गया। कार्यक्रम का शुभारंभ गांधीवादी विचारक आरके पालीवाल, प्रधान आयकर आयुक्त ने किया। विभिन्न स्कूलों के 53 स्टूडेंट्स ने गांधी के जीवन दर्शन पर लघु नाटक गांधी एक यात्रा, वैष्णव जन, गांधी जीवन दर्शन, गांधी जी का कर्तव्य पालन पर अभिनय किया।
इन लघु नाटकों में गांधी के द्वारा उठाए गए सामाजिक सरोकार के विषय जैसे छुआछूत निवारण, सत्य अहिंसा और साम्प्रदायिक सौहार्द के दृृष्टांत मंचित किए गए। पुरस्कारों का वितरण 30 जनवरी गांधी भवन में किया जाएगा। इस अवसर पर गांधी भवन न्यास के सचिव दयाराम नामदेव और बाल कल्याण बाल साहित्य शोध निदेशक और गांधीवादी विचारक महेश सक्सेना, राष्ट्रीय एकता परिषद के महासचिव अनीष भाई ने अपने विचार व्यक्त किए। कार्यक्रम का आयोजन गांधी भवन न्यास, विकल्प, नचिकेता तथा पंचायत विकास परिषद के संयुक्त तत्वावधान में किया गया। कार्यक्रम की भूमिका बाल मित्र मयंक शर्मा तथा मंच संचालन समाजसेवी सतीश पुरोहित ने किया।
असेंबली में विस्फोट कर गिरफ्तार हो जाते हैं क्रांतिकारी
भारत भवन में मुक्ति पर्व-2 में फिल्म शहीद का प्रदर्शन
भोपाल। भारत भवन में चल रहे पांच दिवसीय फिल्म समारोह मुक्ति पर्व-2 में चौथे दिन सोमवार को एसराम शर्मा निर्देशित फिल्म 'शहीद' का प्रदर्शन किया गया। यह आयोजन भारत भवन के छवि प्रभाग के द्वारा स्वतंत्रता संग्राम में शामिल बलिदानियों के प्रणति देने के लिए किया जा रहा है। यह फिल्म की कहानी सन 1916 के हिन्दुस्तान की पृष्ठभूमि में सरदार किशन सिंह और उनके परिवार के साथ शुरू होती है।
जिसमें छोटे भाई अजित सिंह को ब्रिटिश राज के खिलाफ बगावत के कारण पुलिस गिगफ्तार कर ले जाती है। भगत सिंह जो अभी आठ नौ साल का बच्चा है अपनी आंखों से यह सब देखता रह जाता है। पुलिस लाठीचार्ज में लाला लाजपत राय की मौत हो जाती है। सुखदेव, राजगुरु, चंद्रशेखर आजाद आदि मिलकर लालाजी की मौत का बदला लेने की योजना को अंजाम देते हैं। अगले दृश्य में यही भगत सिंह बटुकेश्वर दत्त के साथ दिल्ली असेंबली में बम विस्फोट कर गिरफ्तार हो जाता है। कहानी में मुकदमें व जेल में दी गई यातनाओं के दृश्यों के साथ देशभक्ति के गानों हैं। जिसमें सभी कलाकार अपने-अपने अभिनय की छाप छोड़ते नजर आते हैं। फिल्म की कहानी सुखदेव-राजगुरु-भगतसिंह की फांसी के साथ पूरे क्लाइमेक्स पर जाकर खत्म होती है।
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