
शिवपुरी. किसी भी शवयात्रा व अंतिम संस्कार में महिलाएं व युवतियां नहीं जातीं, लेकिन शनिवार की देर शाम शिवपुरी मुक्तिधाम में छह युवतियां न केवल शवयात्रा में गईं, बल्कि वे नम आंखों से अपनी दादी के अंतिम संस्कार में भी शामिल हुईं। युवतियों का कहना था कि जिस दादी ने हमें बचपन से न केवल संभाला, बल्कि उंगली पकडक़र हमें चलना सिखाया, तो फिर हम उनकी अंतिम विदाई में क्यों नहीं जा सकते..?।
शिवपुरी के मुक्तिधाम पर उस समय अलग नजारा नजर आया, जब वहां गहोई समाज के अध्यक्ष मनोज गुप्ता के यहां से अंकिता, अपूर्वा, पूजा, तनु, गोल्डी और खुशी अपनी परदादी रामप्यारी गुप्ता (उम्र 97 वर्ष) को अलविदा कहने पहुंची। जब उन युवतियों से बात की, तो उनका कहना था कि जब समाज में बेटे-बेटी के समान अधिकार की बात हो रही है तो फिर यहां पर यह अधिकार हमसे क्यों छीना जा रहा है, इसलिए हम सभी बहनों ने तय किया कि हम भी अपनी परदादी की अंतिम यात्रा में शामिल होंगे। क्योंकि जिस दादी ने हमें बचपन से लेकर आज तक खिलाया, उंगली पकडक़र चलना सिखाया और समाज के तौर तरीकों के बारे में बताया, हम तो उसी पर अमल कर रहे हैं।
हमारी दादी भले ही 97 साल की थीं, लेकिन उनकी सोच आज के जमाने की थी। वह कभी भी बेटियों को बेटों से कम नहीं समझती थीं और आज हम जो यहां पर आए हैं, यह भी उन्हीं की प्रेरणा रही। बेटियों की बात सुनकर मुक्तिधाम पर मौजूद लोगों ने उनका समर्थन किया।
हम बच्चों की खिलौने जैसी थीं दादी
अंकिता ने बताया कि जबसे हमने होश संभाला, तभी से दादी को एक जैसा ही देखा। हम सब बच्चोंं के लिए दादी के रहते खिलौनों की जरूरत नहीं पड़ी, क्योंकि दादी ही हमारे लिए खिलौने जैसी थीं, जब भी कोई रूठता था तो दादी सबसे पहले मनाने आती थीं। आज जब हमारी दादी भगवान के पास जा रही थीं तो उनके साथ मुक्तिधाम तक का सफर करने की इच्छा हमने अपने परिजनों से कही तो उन्होंने इस बात को सहजता के साथ स्वीकार कर लिया।
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