
सवाईमाधेापुर. बाघों की आबादी बढ़ाने के लिए न सिर्फ रणथम्भौर बाघ परियोजना से बाघों को शिफ्ट किया जा रहा है बल्कि यहां से बीमारियां भी शिफ्ट होने का खतरा बढ़ रहा है। यहीं खतरा रणथम्भौर पर भी मंडरा रहा है, लेकिन इस ओर अधिकारियों की उदासीनता इसे और बढ़ावा दे रही है। एक ही पीढ़ी के बाघ-बाघिनों में वंशवृद्धि से जेनेटिक डिस्ऑर्डर की समस्या प्रबल हो रही है। मुकुंदरा में बाघ-बाघिनों की शिफ्टिंग को लेकर एनटीसीए ने इस बारे में बताया था। वहीं टी 91 को शिफ्ट करने के बाद इस पर गत दिनों एनटीसीए ने आपत्ति भी जताई है।
यह था सरकार का आदेश
पूर्व में 2015 में जब राज्य सरकार की ओर से कोटा के मुकुंदरा हिल्स टाइगर रिजर्व को बसाने की योजना बनाई थी तो केन्द्र सरकार ने राज्य सरकार को मुकुंदरा में मध्यप्रदेश व महाराष्ट्र के अभयारण्यों से बाघों को शिफ्ट किया जाना था। इसमें मध्यप्रदेश के कान्हा, पेंच व बांधवगढ़ व महाराष्ट्र के ताडोबा अभयारण्यों को शामिल किया गया था। वहीं महाराष्ट्र व एमपी से मुकुंदरा में बाघों के शिफ्ट होने के बाद एमपी व महाराष्ट्र में रणथम्भौर से बाघों को शिफ्ट किया जाना था। लेकिन विभाग ने बाघों की शिफ्टिंग में नियम ताक में रखकर मुकुंदरा में रणथम्भौर से ही बाघ को शिफ्ट कर दिया।
पेट की बीमारी इसी का उदाहरण
रणथम्भौर में पूर्व में बाघ बाघिनों को एक जैसी बीमारियों से पहले भी जूझना पड़ा है। पूर्व में रणथम्भौर के बाघ उस्ताद(टी-24) को पेट की बीमारी से गुजरना पड़ा था। इसी प्रकार बाघिन लाडली (टी-8) के मेल शावक को भी पेट में तकलीफ हो गई थी। जानकारों के अनुसार यह बीमारी एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में उनके पिता के जीन से आई है। बाघ टी 24 का पिता टी 20 यानि झूमरू था। इधर टी 8 के साथ रहने वाला बाघ कुम्भा का पिता भी झूमरू ही था। ऐसे में पेट से संबंधित बीमारी टी 8 के मेल शावक में भी मिली।
रणथम्भौर में आधे से अधिक बाघ मछली परिवार के
रणथम्भौर में मछली की मौत के बाद भी मछली की पीढिय़ां ही बाघों के कुनबे में इजाफा कर रही है। वन अधिकारियों ने बताया कि रणथम्भौर में मछली ने 14 संतानों को जन्म दिया। मछली के अंतिम लीटर में तीन संतानों को जन्म दिया था। इनमेंं से एक फीमेल व दो मेल थे। फीमेल कृष्णा (टी-9) पहले दो मेल व एक फीमेल को जन्म दिया। इसके बाद दूसरे लीटर में कृष्णा के चार बच्चे हुए इनमें से एक की मौत हो गई। बाकी के तीन एरोहेडेड, लाइटनिंग व मेल टागर पैकमैन है। इसी प्रकार मछली की बेटी सुंदरी(टी-17)के तीन बच्चे दो मेल व एक फीमेल है। सुंदरी की बेटी बाघिन टी-73 की दो संताने हैं। इनमें एक मेल व एक फीमेल हैं।
मछली के परिवार से ही आबाद सरिस्का
ना केवल रणथम्भौर बल्कि सरिस्का भी मछली के ही परिवार से आबाद हो रहा है। 2008 में सरिस्का को फिर से बसाने के लिए मछली की बेटी टी-18 को सरिस्का भेजा गया था। टी-18 की सरिस्का में पांच संतानें हैं। इसी प्रकार रणथम्भौर से मुकुंदरा भेजने के लिए चयन की गई बाघिन टी-99 व टी-102 का भी मछली के परिवार से रिश्ता है।
एक ही परिवार के बाघ बाघिनों में मेटिंग होने से बाघ-बाघिनों में कई प्रकार की परेशानियों होने की संभावना रहती है। वन्यजीव विशेषज्ञों की माने तो एक ही परिवार के बाघ बाघिनों में मेटिंग से हुई संतान के जीन कमजोर हो जाते हंै। वहीं मां के रही बीमारी का भी उसकी संतान में आने की संभावना रहती है। इसके अतिरिक्त एक ही परिवार के बाघ बाघिन से पैदा हुई संतान को अन्य स्थान पर शिफ्ट करने से वातावरण में हुए बदलाव के कारण भी कई बार बाघ बाघिनों के शरीर में नकारात्मक बदलाव आने की संभावना रहती है।
ये बोले विशेषज्ञ....
शारीरिक खामियां रह सकती है...
वन्यजीवों में होने वाली जेनेटिक समस्याएं लम्बे समय की होती है। इससे संतानों को पूरा शारीरिक विकास नहीं हो पाता है। कई बार कुछ अनुवांशिक रोग भी होने की संभावना रहती है।
नल्ला मुत्थु, प्रसिद्ध वन्यजीव प्रेमी व फिल्म मेकर
समस्या तो हो सकती है...
एक ही परिवार के बाघ बाघिन में प्रजनन से समस्या तो हो सकती है, लेकिन डब्ल्यूआईआई के विशेषज्ञों की माने तो अलग-अलग परिवेश के बाघ बाघिनों के मिलान से भी समस्याओं का खतरा रहता है।
धर्मेन्द्र खाण्डल, सदस्य, स्टेट वाइल्ड लाइफ कमेटी
एक ही परिवार में कॉस ब्रीडिंग में जेनेटिक समस्याएं होने की समस्याएं तो रहती ही है, लेकिन रणथम्भौर में ऐसा कोई मामला सामने नहीं आया है।
डॉ राजीव गर्ग, पशु चिकित्सक, सवाईमाधोपुर
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