
भोपाल. चौकसे नगर में रहने वाले रमेशचंद सेवानी के बेटे प्रणव (परिवर्तित नाम)की मौत के मामले को पुलिस ने पोस्टमार्टम रिपोर्ट के बाद आत्महत्या का मानकर बंद कर दिया। करीब छह माह बाद मामला को फिर खोला गया तो इन्वेस्टीगेशन ऑफि सर को पीएम रिपोर्ट ही समझ नहीं आई। विडंबना यह थी कि पोस्टमार्टम रिपोर्ट लिखने वाला डॉक्टर ही अपनी हैंडराइटिंग नहीं समझ पाया। अब जब हैंडराइटिंग समझ आएगी, तब पता चलेगा कि यह मर्डर है या सुसाइड।
दरअसल डॉक्टरों की घसीटा हैंडराइटिंग के चलते कई बार इस तरह की दिक्कतें आती हैं। कोर्ट में पेश मामले कई बार घसीटा हैंडराइटिंग के चलते गलत फैसले हो गए। ऐसे मामले अब ना हो इसके लिए मप्र मेडिकल विवि ने सभी मेडिकल कॉलेजों को पोस्टमार्टम रिपोर्ट को टाइप फॉर्मेट में लिखने का सुझाव दिया है। विवि के चांसलर डॉ. आरसी शर्मा के मुताबिक डॉक्टरों की खराब हैंडराइटिंग के चलते रिपोर्ट पढ़ी नहीं जा सकती। गौरतलब है कि एमसीआई भी लगातार डॉक्टरों को कैपिटल लेटर्स में प्रिस्क्रिप्शन लिखने के निर्देश जारी कर चुका है।
बेहद कठिन है मेडिकल शब्दावली
डॉ. शर्मा का कहना है कि मेडिकल शब्दावली बहुत जटिल होती है। इसके एक-एक शब्द के कई अर्थ हो सकते हैं, ऐसे में कोई भी रिपोर्ट बनाते समय बेहद सावधानी बरतनी होती है। खराब हैंडराइटिंग के चलते रिपोर्ट का अर्थ गलत निकाला जा सकता है जो कि केस को बदल सकती है।
छह साल में तीसरा निर्देश
एमसीआई ने जेनेरिक दवा और केपिटल लेटर्स में प्रिस्क्रिप्शन लिखने का निर्देश पांच साल में तीसरी बार जारी किया है। 21 अप्रैल को तीसरे पत्र से पहले एमसीआई ने 22 नवंबर 2012 और 18 जनवरी 2013 को निर्देश जारी किए थे।
टाइपिस्ट की व्यवस्था कैसे होगी पता नहीं
विशेषज्ञों का मानना है कि भले ही मेडिकल विवि टाइप फार्मेट में पोस्टमार्टम रिपोर्ट लिखने को कहे लेकिन यह तार्किक रूप से सही नहीं है। इसके लिए मेडिकल कॉलेजों को टाइपिस्ट की नियुक्ति करनी होगी, वह भी ऐसा जो चिकित्सीय शब्दावली को बेहतर तरीके से जानता हो।
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