
भोपाल. 16 साल बाद मध्यप्रदेश में अब फिर से जिला सरकार की वापसी हो रही है। जिला सरकार में जिले के प्रभारी मंत्री मुख्यमंत्री की तरह पॉवरफुल होंगे। वे जिले के निर्णय लेने के मामले में पूरी तरह से स्वतंत्र होंगे। नई व्यवस्था लागू करने के लिए राज्य सरकार ने प्रक्रिया शुरू कर दी है।
दिग्विजय शासनकाल में सत्ता का विकेन्द्रीकरण करते हुए जिला सरकार का गठन किया गया था, लेकिन वर्ष 2003 में सत्ता में भाजपा आते ही जिला सरकार को समाप्त कर दिया गया। अब कांग्रेस की फिर से वापसी हुई, तो कांग्रेस ने फिर से सत्ता के विकेन्द्रीकरण की पहल शुरू की।
हाल ही में हुई कैबिनेट बैठक में जिला सरकार के गठन को मंजूरी के बाद सरकार भी एक्टिव हुई है। नई व्यवस्था का पूरा ड्राफ्ट तैयार किया जा रहा है। इसकी जिम्मेदारी राज्य के योजना, आर्थिक एवं सांख्यिकी विभाग को दी गई है।
राज्य में जिला सरकार का कंसेप्ट वापस ला रहे हैं। इससे स्थानीय कामों में तेजी आएगी। प्रभारी मंत्री तृतीय एवं चतुर्थ श्रेणी कर्मचारियों के तबादलों सहित निर्माण कार्यों में भी मंजूरी दे पाएंगे। इससे विकास कार्यों में तेजी आएगी।
- पीसी शर्मा, प्रवक्ता राज्य सरकार एवं जनसंपर्क मंत्री
जिलों में ही निपटेंगे जिलों के काम
- बाशिंदों को छोटे-छोटे कामों के लिए राजधानी भोपाल के चक्कर नहीं काटना होंगे।
- अधिकतर फैसले लेने के अधिकार प्रभारी मंत्री के पास होंगे।
- जिला योजना समिति के माध्यम से विकास कार्यों के निर्णय भी जिला सरकार ले सकेगी। 3 करोड़ तक विकास कार्य के अधिकार होंगे।
- प्रभारी मंत्री जिला योजना समिति के अध्यक्ष और कलेक्टर सचिव होंगे। जिला योजना समिति ही जिला सरकार चलाएगी।
- जिला स्तर पर कर्मचारियों के तबादले के अधिकार जिला सरकार के पास होंगे। प्रभारी मंत्री के अनुमोदन से इनके तबादले होंगे।
- एक तय लागत की विकास योजनाओं की प्रशासकीय मंजूरी जिले में ही मिल जाएगी।
- पीडब्ल्यूडी, जल संसाधन, पीएचई जैसे विभाग जिले में तैयार होने वाली योजनाओं की संक्षेपिका जिला सरकार को पेश करेंगीं और जिला सरकार इसका विश्लेषण और परीक्षण कर मंजूरी दे देगी। जिला सरकार की मंजूरी के बाद वित्त विभाग से बजट की डिमांड की जाएगी।
- विभागों के टारगेट और इनकी मॉनीटरिंग भी जिला स्तर पर होगी।
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