भोपाल. राज्य सरकार मठ मंदिरों में गुरु-शिष्य की परम्परा को आगे बढ़ाएगी। संत का नामांतरण भी इसी परम्परा से होगा। सरकार ने इसके लिए नीति और नियम तैयार कर इन्हें लागू कर दिया है। गुरु-शिष्य परम्परा सनातन काल से चली आ रही है, लेकिन प्रदेश में इसे कानूनी मान्यता नहीं थी। सरकार ने इसे कानूनी मान्यता दे दी है। यानी गुरु-शिष्य परम्परा के पालन में नियम-कानून का ध्यान रखना होगा। पहले नियम नहीं होने से कई बार विवाद की स्थिति बन जाती थी।
नए नीति-नियमों के अनुसार, अब यदि किसी मठ-मंदिर में पिता पुजारी हैं तो उन्हें गुरू माना जाएगा। यानी पिता के पुजारी होने की स्थिति में पुत्र और उसी वंश के आवेदक को अन्य सभी योग्यता पूरी करने पर ही वरीयता दी जाएगी। साथ ही मठ में संप्रदाय विशेष या अखाड़ा विशेष के पुजारी की परंपरा रहेगी।
निर्धारित योग्यता का पालन करना जरूरी
गुरु-शिष्य परम्परा के तहत मठ में संत के नामांतरण की प्रक्रिया सालों पुरानी है। अब संत के लिए निर्धारित योग्यता का पालन करना अनिवार्य होगा। यदि शिष्य किसी अपराध में लिप्त है तो उसे गुरु-शिष्य परम्परा के तहत लाभ नहीं मिलेगा। किसी भी प्रकार के अनैनिक कार्य, संदिग्ध आचरण होने पर भी उसे मठ मंदिर का संत नहीं बनाया जाएगा। मांस-मदिरा का सेवन करने वाले भी इसके योग्य नहीं माने जाएंगे।
पुजारियों की योग्यता का निर्धारण पहले ही
प्रदेश सरकार मठ मंदिरों में पुजारियों की योग्यता और नियुक्ति प्रक्रिया का निर्धारण पहले ही कर चुकी है। इसके तहत पुजारी की न्यूनतम उम्र 18 वर्ष है। उसे कम से कम आठवीं पास होना जरूरी है। साथ ही उसने पूजा विधि की प्रमाण पत्र परीक्षा उत्तीर्ण की हो और उसे पूजा के विधि विधान का ज्ञान होना भी जरूरी है। पुजारी की योग्यता में शुद्ध शकाहारी व्यक्ति को ही मान्यता मिलेगी।
भाजपा सरकार के अलग थे प्रयास
भा जपा सरकार ने पुजारियों के पद के लिए सभी वर्गों के लोगों को भर्ती करने की पेशकश की थी, लेकिन कांग्रेस सरकार ने इसकी बजाय वंश परम्परा को महत्व दिया है। विधानसभा चुनाव के पहले कांग्रेस के वचन-पत्र में भी मठ-मंदिर का नामांतरण गुरु-शिष्य परम्परा के अनुसार करने और पुजारियों की वंश परम्परा के अनुसार नियुक्ति का वादा किया गया था। अब इस वादे को पूरा किया गया है।
वचन पत्र में किया था वादा
- मठ मंदिरों के नामांतरण में गुरु-शिष्य परम्परा लागू की जाएगी। कांग्रेस ने वचन पत्र में भी इसका वादा किया था। इस वचन को पूरा किया गया है।
- पीसी शर्मा, मंत्री, अध्यात्म विभाग
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