गंगापुरसिटी. क्षेत्र में पानी की कमी के चलते सालभर ही लोग टैंकरों के माध्यम से पानी खरीद घरेलू और अन्य आवश्यक कार्योंे को पूरा करते हैं, लेकिन इन टैंकरों की सफाईकब हुई और पानी की शुद्धता का कोई प्रमाण नहीं है। ऐसे में लोगों के हलक तर करने के नाम पर जल जनित बीमारियां बांटी जा रही है। गर्मी के सीजन में जंग लगे टैंकरों से धड़ल्ले से पानी की सप्लाई हो जाती है और इसका खामियाजा टैंकर का पानी खरीदने वाले परिवारों को भुगतना पड़ता है। टैंकरों की सफाई की जांच भी संबंधितों की ओर से नहीं की जा रही।
इस बार तापमान अधिक होने और जल स्तर गहरा जाने से जलसंकट और बढ़ गया है। क्षेत्र में तापमान 47 डिग्री तक पहुंचा गया है। बढ़ते जल संकट से स्थानीय टैंकर संचालकों की चांदी हो गई। क्षेत्र के शहरी इलाके के साथ ही ग्रामीण इलाकों में भी टैंकर संचालकों का घर-घर जाकर बीमारियां बांटने का खेल शुरू हो गया है। शुद्ध पेयजल के नहीं होने से जल जनित बीमारियों के मरीज बढऩे लगे हैं। क्षेत्र के ज्यादातर हिस्सों में टैंकरों द्वारा पानी की सप्लाई की जा रही है। जलदाय विभाग की ओर से पानी के शुद्धीकरण का भले ही दावा किया जाता रहा है, लेकिन इन दिनों संचालित होने वाले निजी व सरकारी ठेके पर लगे टैंकरों की सफाई व पानी की शुद्धता का उत्तर किसी के पास नहीं है। कईटैंकर तो पुराने होने के कारण उनके अन्दरूनी हिस्सों में जंग लग रही है। जिनमें जंग और चिकनाई की परत जमी हुई देखी जा सती है। क्षेत्र के ज्यादातर लोग सीधे ही इस पानी को पीने के काम में लेते हैं। इसका नतीजा उन्हें उल्टी, दस्त, पीलिया और बुखार जैसी बीमारियों से पीडि़त होकर भुगतना पड़ता है।
सबसे अधिक खतरा किडनी को
चिकित्सकों की मानें तो टैंकरों से आपूर्ति होने वाला पानी काफी खतरनाक साबित हो सकता है। लम्बे समय से सफाई नहीं होने से इनमें हेवी मेटल से जंग की मात्रा बढ़ जाती है। इसके साथ ही पानी में भी जंग फैल जाती है। लगातार या लम्बे समय तक ऐसे पानी को पीने से सबसे अधिक कुप्रभाव किडनी पर पड़ता है।
जलदाय विभाग नहीं दिखा रहा गम्भीरता
सेहत के साथ खिलवाड़ का यह ऐसा मामला है, जिस पर किसी का ध्यान नहीं है। इस बात को न तो जलदाय विभाग के अभियन्ता ही गंभीरता से लेते नजर आ रहे और न ही जनप्रतिनिधि या कोई अन्य अधिकारी इस बारे में सोचते हैं। कई सालों पुराने टैंकरों के बाहरी हिस्से पर संचालक पेन्ट करा देते हैं, लेकिन अन्दर का हिस्सा पूरी तरह से जंग और काई से भरा होता है। इसके साथ ही लोगों को मुंह मांगे दामों में कई प्रकार की गम्भीर बीमारियों की सौगात मिल रही है।
ग्रामीण क्षेत्र में हालात बदतर
क्षेत्र में कम बारिश होने से पानी की समस्या ने विकराल रूप ले रखा है। आमतौर पर ग्रामीण कुओं और तालाबों से पानी लाकर घरेलू और पेयजल की पूर्ति करते हैं, लेकिन गर्मी के मौसम में भूगर्भीय स्रोत दम तोड़ देते हैं। तालाब लगभग सूख चुके होते हैं। ऐसे में ग्रामीणों को टैंकरों के माध्यम से ही पानी मंगाना पड़ता हैै। क्षेत्र के उदेईकलां गांव में तो पानी की कोई चोरी न कर ले, इसके लिए टंकियों पर ताला भी लगाया जाता है। ऐसे में ग्रामीण क्षेत्रों में लोग बिना जांच पड़ताल किए ही टैंकरों के पानी को पीने के काम में ले लेते हैं।
टैंकरों के अलावा नहीं कोई विकल्प
क्षेत्र में पानी की किल्लत के चलते टैंकरों से पानी की आपूर्ति के अलावा अन्य कोई विकल्प भी नहीं हैं। इसके अलावा क्षेत्र में प्राकृतिक जल स्रोतों की कमी भी क्षेत्र में जल संकट का मुख्य कारण है।
ग्रामीण क्षेत्रों में बीमारी का आंकड़ा अधिक
चिकित्सकों ने बताया कि शहरी क्षेत्र में लोग अपनी सेहत का ख्याल रखते हुए घरों में आरो मशीन लगवा लेते हैं या कैंपर का पानी भी मंगवा लेते हैं, लेकिन ग्रामीण क्षेत्र में पेयजल की कमी, जागरूकता का अभाव और सुविधाओं की कमी के चलते मजबूरन यही पानी पीना पड़ता है।
स्वास्थ्य के लिए हानिकारक
जंग खाए टैंकरों के सम्पर्क में आए पानी को पीना स्वास्थ्य के साथ खिलवाड़ है। इन टैंकरों में दूषित पानी जैसी लापरवाही पर अधिकतर पीने वाले भी ध्यान नहीं देते हैं। दूषित पानी के लगातार सेवन से उल्टी, दस्त जैसी समस्याएं हो सकती हैं। टैंकर में भरे हुए गन्दे पानी को पेयजल के रूप में काम में लेने से पीलिया जैसे घातक रोग भी हो सकते हैं। ऐसे टैंकर जिनका मुंह खुला हुआ हो और उसमें पक्षी बीट कर जाते हों तो पेट में इन्फेक्शन का भी खतरा रहता है।
डॉ. आर.सी. मीना, चिकित्सक राजकीय चिकित्सालय, गंगापुरसिटी।
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