
ग्वालियर। शिवपुरी विकासखंड के ग्राम करमाजकलां में आयोजित चाय-चौपाल में दलित महिलाओं से कैबिनेट मंत्री यशोधरा राजे और कलेक्टर ने बातचीत की। इससे पूर्व हितग्राहियों को संबल कार्ड और बिजली बिल ऋण माफी के प्रमाण पत्रों का वितरण किया गया। इस दौरान गांव की आदिवासी महिला सरपंच अनजान सी एक कुर्सी पर अकेली बैठी रही। बाद में सरपंच को मंत्री ने आगे बुलाया और उसकी स्थिति देखकर कलेक्टर शिल्पा गुप्ता ने कहा कि हम जल्द ही सरपंचों को ट्रेनिंग देंगे।
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गुरुवार दोपहर 12 बजे मंत्री का काफिला करमाजकलां जाने के लिए निकला,लेकिन पोहरी रोड पर पायलेटिंग वाहन गांव का रास्ता भूलकर सीधे निकल गया। लगभग एक किमी दूर से काफिला फिर वापस लौटा और फिर गांव पहुंचे। जहां कार्यक्रम में सबसे पहले स्कूली बच्चों को दो कॉपी,पैंसिल,रबर व कटर वितरित किए फिर विभिन्न योजनाओं के हितग्राहियों को शासन की योजनाओं के तहत प्रमाण पत्र दिए गए।
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कार्यक्रम के मंच पर गांव की महिला सरपंच संतरा आदिवासी भी मौजूद थी,लेकिन वो पूरे समय कोने की एक कुर्सी पर यूं ही बैठी रही। कार्यक्रम जब अंतिम चरण में आया तो सरपंच को मंत्री ने सामने बुलाया और उसको काफी देर तक देखती रहीं। बाद में उन्हें भी समझ आया कि शासन की योजनाओं को सरपंच ग्रामीणों तक नहीं पहुंचा पाएगी। मंत्री के भाव को समझकर कलेक्टर शिल्पा गुप्ता ने कहा कि हम ऐसी सरपंचों को टे्रेनिंग देंगे।
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फिर शुरू हुई चाय-चौपाल
गांव में रहने वाले मंगी जाटव के घर के छप्पर वाले आंगन में चारपाई बिछाई गई और सामने लगभग दो दर्जन महिलाएं बैठी हुई थीं। मंत्री व कलेक्टर वहां पहुंचीं और चारपाई पर बैठ गईं। फिर शुरू हुआ बातचीत का दौर,तो मंत्री ने पूछा कि आप लोगों ने शौचालय बनाया या नहीं,तो महिलाएं बोलीं कि हमें पैसा ही नहीं मिला।
मंत्री ने कहा कि पहले हम पैसा देते थे तो लोग उसका शौचालय में उपयोग नहीं करते,इसलिए पहले आप शौचालय बनाकर उसका फोटो दें तो आपको पैसा मिलेगा। फिर मंत्री ने पसीना पोंछते हुए कहा कि हम यहां गर्मी में आप लोगों को इतना सब दे रहे हैं,लेकिन जब चुनाव आता है तो कहीं पंजा आ जाता है तो कहीं नीला हाथी झूमता हुआ आता है।
सरपंच की भी रोचक कहानी
ग्राम पंचायत करमाजकलां की महिला सरपंच संतरा आदिवासी है और इस पूरे गांव में वो ही एकमात्र आदिवासी परिवार है। यह सरपंच गांव के ही एक व्यक्ति के फार्म हाउस पर काम करती है,क्योंकि उसी ने उसे सरपंच बनाने में पूरा योगदान निभाया। जब सरपंच से पूछा कि वो कहां काम करती है, तो उसने बताया कि हम फार्म पर काम करते हैं। वहां से कुछ पैसा मिल जाता है, सरपंच के मानदेय के बारे में उसे जानकारी नहीं थी।
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