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भोपाल. विधानसभा में नियुक्ति विवाद थमने का नाम नहीं ले रहा। विधानसभा उपाध्यक्ष की आपत्ति के बाद विधानसभा सचिवालय ने यहां हो रही नियुक्तियों को स्थगित कर दिया था। शुक्रवार को फिर से नियुक्ति प्रक्रिया शुरू कर दी। तर्क दिया कि कार्यभारित कर्मचारियों को नियमित किए जाने के लिए साक्षात्कार लिए जा रहे हैं। विधानसभा सचिवालय ने हाल ही में 40 पदों के लिए विज्ञापन जारी किया था।
इसमें 5 वाहन चालक, 5 सुरक्षा गार्ड, 15 समिति सहायक और 15 सहायक ग्रेड तीन के पद शामिल थे। सचिवालय ने इनके लिए सूचना पटल पर विज्ञापन जारी कर रोजगार कार्यालय से नाम बुलाए। विवाद के चलते इन्हें स्थगित कर दिया। सचिवालय ने वाहन चालक के रिक्त 5 पदों के लिए नियुक्ति शुरू कर दी। इसको लेकर फिर से विवाद शुरू हो गया है। आरोप है कि कार्यभारित कर्मचारियों को ही नियमित करना था तो रोजगार कार्यालय से नाम क्यों बुलाए गए।
नाते रिश्तेदारों को मिलता रहा मौका
वि धानसभा में हुई नियुक्तियों में नेताओं, अफसरों के नाते रिश्तेदारों को मौका मिलने के कारण इन पर सवाल उठते रहे हैं। वर्तमान अध्यक्ष डॉ. सीतासरन शर्मा इटारसी के हैं। आरोप है कि यहां हुई नियुक्तियों में इटारसी, होशंगाबाद और आस-पास जिलों के लोगों को महत्व मिला। विधानसभा सचिवालय के अफसरों और नेताओं के संगे संबंधी भी इसमें शामिल हैं।
अनिरुद्ध दुबे (होशंगाबाद), योगेन्द्र राय (इटारसी), अंकिता दीवान और अमित दीवान (ये विधानसभा में कार्यरत रहे ओपी दीवान के परिजन हैं), प्रियंकर रघुवंशी (रिटायर्ड संचालक सुरक्षा अरविंद रघुवंशी के परिजन हैं) अनुभव कटारे (मंत्री नरोत्तम मिश्रा के भांजे हैं) ये सभी इन्हीं के कार्यकाल में नियुक्त हुए हैं। ये तो चंद उदारहण है, अन्य नियुक्तियों में भी यही स्थिति है।
यहां भी टूटा नियम...
श्रीकांत गुप्ता की नियुक्ति के मामले में नियमों को दरकिनार किया गया। रिपोर्टर पद के लिए पांच लोगों की नियुक्ति हुई, इन्हें छह माह के लिए प्रतीक्षा सूची में रखा गया। यह समय बीतने के बाद छह माह के लिए इन्हें एक और मौका मिला। एक कर्मचारी के निधन के कारण पद रिक्त हुआ तो इन्हें नियुक्ति मिली। जबकि, होना यह चाहिए था कि इनके साथ वालों में से यदि कोई ज्वाइन नहीं करता या नौकरी छोड़ता तो इनको मौका मिलना था।
संदिग्ध रही हैं विस की नियुक्तियां
श्रीनिवास तिवारी के कार्यकाल में सर्वाधिक 175 नियुक्तियां हुईं। इनमें कुछ तो एक ही परिवार के हैं। नियुक्ति दिनांक भी एक है। कई अन्य विभागों में प्रतिनियुक्ति पर भेजे गए और उनकी सेवाएं वहीं मर्ज हो गईं। ऐसे 17 लोगों की नियुक्ति को विधानसभा सचिवालय ने नियम विरुद्ध मानते हुए एफआइआर करा चुका है।
ईश्वरदास रोहाणी के कार्यकाल में 50 नियुक्तियां हुईं। तिवारी के कार्यकाल का मामला कोर्ट में गया तो रोहाणी के कार्यकाल में हुई नियुक्तियों को भी कोर्ट में चुनौती दी गई। तर्क दिया गया कि नियुक्ति के दौरान नियुक्ति प्रक्रिया का पालन नहीं किया गया। न तो इसका विज्ञापन जारी हुआ और न ही नियुक्ति के दौरान शैक्षणिक योग्यता इत्यादि का ध्यान रखा गया।
नियुक्ति प्रक्रिया नियमों के तहत ही हुई है। उपाध्यक्ष की सलाह पर नियुक्ति प्रक्रिया स्थगित कर दी थी। उन्हीं की सलाह थी कि कार्यभारित कर्मचारियों को पहले मौका मिले, उसी के तहत वाहन चालकों को नियमित करने के लिए साक्षात्कार लिए गए।
-डॉ. सीतासरन शर्मा, अध्यक्ष, मप्र विधानसभा
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