
...और कितने चुनावों तक हवाई अड्डे के नाम पर मतदाताओं को ठगोगे भैया। साल भर पहले जब खिलौना हवाई जहाज उड़ा था, तभी बड़े-बूढों ने कह दिया था, ये ज्यादा दिन चलने वाला नहीं है। यह सब लोगों की री री मिटाने का जुगाड़ है, जो कोई न कोई बहाना बनाकर बन्द कर दिया जाएगा, और वही हुआ। और हम हवाई जहाज में बैठकर उडऩे की सोचते ही रह गए। पढ़िए राइटर रामनारायण हलधर का व्यंग्य...
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कोटा से जयपुर तक उड़कर जाने का कितना अरमान था, क्या-क्या नहीं सोच रखा था। कि 100 ग्राम मूंगफली लेकर खाते हुए जाएंगे, जब तक मूंगफली खत्म होगी, जयपुर आ जाएगा। अपन तो टिकट के पैसे इक_े ही कर रहे थे और उडऩ खटोला बन्द भी हो गया। एक झटके में सपना तोड़ दिया संगदिलों ने।
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खैर, अब चुनाव आ गए हैं तो फिर इस मुद्दे को उछाला जा रहा है। ताकि इस बार भी हवाई अड्डे के नाम पर वोट बटोरे जा सकें। जैसे हवाई अड्डा ना हुआ, दुधारू गाय हो गई, जिसे हर चुनाव में दुहते रहना हैं। वैसे जनता भी कम नहीं है, घरेलू उड़ान तो शुरू हो नहीं पाई और लोग अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा बनाने की मांग करने लगे।
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अच्छा है, मांगने में क्या जाता है? जनता का काम मांग करना है और नेताजी का घोषणाएं करना। यही तो लोकतंत्र है। वे कितने उदार हैं कम से कम जनता की मांग पर तो कोई रोक नहीं है। वैसे अब मेरी हवाई जहाज और हवाई अड्डे में रुचि नहीं रही, मैंने अब अपनी मांग ही बदल दी। मैं चाहता हूं कि अब आने वाली सरकार कोटा में उपग्रह प्रक्षेपण केंद्र खोले। देश-विदेश घूमने में क्या रखा है। अब हम सीधे अंतरिक्ष की सैर करेंगे।
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अगर राजनीतिक पार्टियां कोटावासियों के साथ किए गए विश्वासघात के बदले पश्चाताप करना चाहती हैं तो उन्हें हमारी इत्ती सी मांग तो पूरी करनी होगी। चलिए देखते हैं, घोषणा पत्रों की लॉटरी में हमारी किस्मत में हवाई जहाज निकलता है या मंगल यान।
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