
भोपाल। डॉ. विष्णु श्रीधर वाकणाकर कर्मठ और शोधी प्रवृत्ति के पुरातत्ववेत्ता थे। वे विषय की गहनता में जाकर अपनी शंकाओं और जिज्ञासाओं के समाधान पाते थे। उनका मानना था कि समाज के सामने किसी भी परिणाम के साथ जाने के पहले स्वयं सत्यता की कसौटी पर विषय और स्थापना की परख कर लेना अत्यन्त आवश्यक है। पुरातत्वविद व भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के पूर्व महानिदेशक पीवीएस सेंगर ने यह बात सोमवार को राज्य संग्रहालय सभागार में आयोजित कार्यक्रम में कही।
डॉ. विष्णु श्रीधर वाकणाकर की जन्मशताब्दी के अवसर पर संचालनालय पुरातत्व अभिलेखागार एवं संग्रहालय की ओर से एक व्याख्यान का आयोजन किया गया था। भारतीय पुरातत्व में वाकणकर के योगदान पर बोलते हुए उन्होंने कहा कि उनका जीवन भ्रमण, शोध, लेखन, विश्लेषण और पुनर्लेखन की व्यापकता में ही निहित रहा है। भीमबैठका की गुफाओं में प्राचीन मानव की उपस्थिति और उसकी जीवनशैली कल्पनाशीलता और स्मृतियों के जिस तरह के चित्रित अवशेष उन्होंने देखे वह अचम्भित करने वाले थे।
सहज, मिलनसार और लोगों से रखते सहज व्यवहार
सेंगर ने कहा कि भीमबैठका ही नहीं अनेक महत्वपूर्ण स्थलों, शैलाश्रय कलाओं की खोज व शोध, कृषि, खेती, सांस्कृतिक विरासत, सरस्वती आदि नदियों के तट की विशिष्टताएं और प्राचीनतम साक्ष्य, पण्डोला ग्राम की खोज आदि के परिणामों के साथ विष्णु श्रीधर वाकणकर के व्यक्तित्व की सार्थकता को आंका जा सकता है। व्यक्तित्व के रूप में वे बहुत सहज, मिलनसार और अपनी प्रतिष्ठा और पहचान से अलग सहज व्यवहार के लिए जाने जाते थे। विशेषकर सहयोगियों के साथ उनका समरस होना और उनकी जिज्ञासाओं का समाधान करना उनके गुणों में शामिल था। कार्यक्रम में संस्कृति विभाग के प्रमुख सचिव व पुरातत्व विभाग के आयुक्त पंकज राग समेत अन्य लोग उपस्थित रहे।
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