
जितेन्द्र चौरसिया, भोपाल. केंद्र में मोदी सरकार आने के बाद राष्ट्रीय स्तर पर अचानक बदले परिदृश्य ने मध्यप्रदेश में कांग्रेस के सामने चुनौतियों का चक्रव्यूह बना दिया है। यहां कांग्रेस और सीएम कमलनाथ के सामने तीन बड़ी अग्निपरीक्षा है।
एक ओर जहां विधायकों के बिखराव को रोककर सरकार गिरने का खतरा दूर करना है, तो दूसरी ओर आयकर विभाग के छापे और सीबीआई जांच के हालातों से निपटना है। इस बीच नए प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष के चयन में सियासी समीकरणों को साधना भी बड़ी चुनौती है, क्योंकि नए अध्यक्ष के कारण संगठन और सत्ता का तालमेल बैठाना होगा।
इन तीनों मोर्चो पर निपटने के साथ खस्ताहाल सरकारी खजाने के साथ सरकार का संचालन भी आसान नहीं है, क्योंकि किसान कर्जमाफी सहित वचन-पत्र के अन्य वादों को पूरा करने का बोझ सरकार पर है। विधायकों के बिखराव को रोकना, इनकम टैक्स छापे-सीबीआई जांच और नए अध्यक्ष के चयन से सियासी समीकरण बदलने की चुनौती...
ऐसे समझिए 3 बड़ी चुनौतियां...
- सरकार बचाए रखना
सीएम के समाने सबसे बड़ी चुनौती सरकार स्थिर रखने की है। कांग्रेस आलाकमान ने प्रदेश में कांग्रेस विधायकों को एकजुट रखने का टॉस्क देकर ही कमलनाथ को दिल्ली आने से रोका है। लोकसभा चुनाव की हार के बाद बीते सोमवार कमलनाथ दिल्ली जाने वाले थे, लेकिन कांग्रेस आलाकमान ने गाइडलाइन दी कि पहले प्रदेश में माहौल संभाला जाए। कमलनाथ पूर्व सीएम दिग्विजय सिंह को साथ लेकर विधायकों को एकजुट रखने में लगे रहे। कमलनाथ ने विधायक दल की बैठक करके 124 विधायकों से समर्थन प्रस्ताव पर हस्ताक्षर लिए हैं।
- छापों की सियासत
दूसरी चुनौती आयकर छापे के बाद सीबीआई जांच के बनते हालातों से निपटने की है। मंगलवार को आयकर छापों के दस्तावेजों में उनकी अपने ओएसडी से बातचीत होने के कथित रिपोट्र्स आने के बाद उन्होंने कोर्ट में जवाब देने की बात कही है। दरअसल, उनके करीबियों के यहां आयकर छापे के बाद डीओपीटी ने सीबीआई जांच की मंजूरी दे दी थी। यदि सीबीआई जांच के हालात बनते हैं, तो मुश्किलें बढ़ेंगी। इसके अलावा उनके बेटे के गाजियाबाद-उप्र में आइएमटी इंस्टीट्यूट को तोडऩे के नोटिस पर भी वे उलझे हैं। इस पर भी कानूनी रास्ता अपना रहे हैं।
- नया नेतृत्व
तीसरी बड़ी चुनौती कांग्रेस और कमलनाथ के लिए प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष पद पर नई नियुक्ति की स्थिति में सियासी समीकरणों को साधने की है। कमलनाथ ने प्रदेश अध्यक्ष का पद छोडऩे की बात कही है। इसलिए नए प्रदेश अध्यक्ष का चयन होना है। कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी से नजदीकी के कारण सिंधिया मजबूत दावेदारों में हैं। कमलनाथ खेमे से प्रदेश अध्यक्ष बनता है, तो यह उनके लिए ज्यादा मुफीद रहेगा। ऐसी स्थिति में संगठन और सरकार में तालमेल बेहतर रहेगा। सिंधिया या उनके खेमे से अध्यक्ष बनने पर तालमेल गड़बड़ा सकता है।
- ये अलग मुश्किल
कांग्रेस सरकार के सामने सरकारी खजाने की खस्ताहाल अलग बड़ी मुश्किल है। 36 लाख किसानों का कर्जमाफी और किया जाना है, लेकिन इसके लिए सरकार के पास पैसा नहीं है। विकास कार्य भी ठप हैं और पुराने भुगतान भी अटके हैं। मुख्य बजट में भी दस फीसदी से अधिक की बढ़ोतरी नहीं हो पाएगी। इसलिए सरकार के संचालन में भी खींचतान के हालात हैं।
भाजपा लोगों को भ्रमित कर रही है। हम फ्लोर टेस्ट के लिए तैयार हैं। पिछली विधायक दल की बैठक में 124 विधायकों ने समर्थन प्रस्ताव पर हस्ताक्षर किए हैं। भाजपा की कोई साजिश है वह कभी सफल नहीं होगी।
कमलनाथ, मुख्यमंत्री, मप्र
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